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बन गया!

मैं थोड़ा सा ठहरा हुआ था क्या
जो समुन्दर कभी किनारा बन गया
हर शाम को खिलने वाला वो चांद
चंद गलियों का कैसे आवारा बन गया।

वो पूछेगा तुझसे अगर आकर कभी
तुम सोचो जरा उसके सवाल क्या होंगे
जिसपर थी मालिक तिरी इतनी रहमत
फिर बेरहमी से कैसे बिचारा बन गया।

कहां किसकी नजर टिकती है एकपर
जो दिल को लगा, उसी से दिल लगा लिया
दिल्लगी होती रही इस जमाने में उस दौर से
दौरान इसके, कैसे बेसहारा बन गया।


हलक में हाथ था, हालांकि उसके
कोई जुबां नही, लफ्ज़ भी खाली निकले
अल्फाजों की 'बोली' जो लगने लगी
'बोल' से इश्क के, सरगम का सितारा बन गया।


 नही कोई तजुर्बा बेकार जाता यहां 'मन'
वहम से टूटे इश्क के गीत बने कई
कल तक आंखों में उसकी खटकता था जो
आज देखो उसी के आंखों का तारा बन गया।


#MJ 

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1 Comments

kapil sharma

27-Feb-2021 07:24 AM

👍👍👍

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